Thursday, December 4, 2008
बाबेल साब अबे राजनीती रा कोर्ट माये
महाराणा कुम्भा रा नाम रा म्हारा विधानसभा क्षेत्र मे मारे काले जावा रो कम पड्यो । तो वठे मने या ख़बर लगी के सरदारगढ़ रा जानिया मान्य वकील श्री बसंती लाल जी बाबेल निर्दलीय उम्मीदवार का रूप में उबा विया है ।
बाबेल साब रो सामनों अठारा पुराना विधायक और सिंचाई मंत्री सुरेन्द्र सिंग सु है । कांग्रेस रा पला में परमार उबा विया है
अबे कुन जीते कुन हारे इकी तो चुनाव रा पाछे ही पतों चलेगो पण अबे आप खली या सुनो के म्हरी तरफ़ सु सबा ने बधाई और
एक संदेश बाबेल साब रे नाम के वे यदि राजनीती में आया है तो उनरा साब सपना सच करें का के जो उनरा सपना है वे ही हमारा भी सपना हो सके है ।
जय मेवाड़।
Saturday, June 7, 2008
दोष नहीं बच्चों का, गलती बडों की है
परसों की बात है मेरी एक दोस्त राजस्थान पत्रिका के भोपाल संसकरण मैं काम करती है जिसका ऑफिस चेतक ब्रिज के पास है. उसके घर पर छोटे भाई ने पता पूछा तो उसने बताया कि चेतक ब्रिज तो उसके लिए ये मजाक का विषय बन गया इसका कारण उसके सुनने में हुयी त्रुटी रही हो या फ़िर हमारी इस बदली हुयी शिक्षा का नतीजा उसका जवाब था क्या आपका ऑफिस तो चेचक ब्रिज के पास है यानि आपके ऑफिस में चिकन पोक्स भी रहता है
उस बच्चे को शायद महाराणा प्रताप के बरे में पता होगा या नहीं मगर उसे ये बात तो पक्की है कि उसे चेतक के बरे में दयां नहीं था ये है ना हमारे लिए शर्म की बात यदि नहीं तो इससे बुरे और किस हालत की उम्मीद कर रहे है आप ।
वक्त के साथ सबकुछ बदल रहा है लोग बदले, सरकारें बदली,जनता की विचारधारा बदली और शायद इसी बदली विचारधारा का नतीजा है कि हमारे स्कूली बच्चों के कोर्स भी बदले जा रहे है।
मेरा अपनी दोस्त से पहला सवाल यहीं था कि क्या वह कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है तो उसका उत्तर सकारात्मक था आज दशा यह है कि हमारे बच्चे चिकन पोक्स में समझते है उर उन्हें महाराणा प्रताप के घोडे का नाम मालूम नहीं है या फ़िर उनके इन्ट्रेस्ट में शामिल नहीं है ।
हम तो सरकारी स्कूलों में पढे है जहाँ सर छिपाने के लिए छत नहीं होती थी मगर वहां से सर उठाने का सबक जर्रोर मिला था वहां खाने के लिए बड़ा पैकेट नहीं होता था मगर भरपेट संस्कार जरूर मिले थे ।
हाँ मैं ये स्वीकारता हूँ कि हमे पर्सनालिटी के जैसा कुछ बताया नहीं गया था फ़िर भी देशभक्ति की प्रेरणा उसी विद्या के मन्दिर में मिली है मगर आज क्या हो रहा है ..............
उससे आप भी वाकिफ है ?
आज किताबों में हेरी पोर्टर को महत्व दिया जाता है पंचतंत्र को नहीं, मिक्की माउस के बरे में बताया जाता है महाराणा प्रताप के बारे में नहीं, फ़िर कैसे पता चलेगा? सब दोष हमारा ही है हमने अपनी शिक्षा की गुणवत्ता के नाम पर ऐसी दुकाने खोल डाली है जहाँ न ही तो ज्ञान है और ना ही संस्कार और ना ही अपनी परम्परा कि कोई सार्थक शिक्षा।
इसके साथ अब एक और दुख वाली बात ये है कि हमारे सरकारी स्कूलों को भी अब भारतीय आदर्शों को पढ़ने में शर्म आने लगी है।
अगर बात राजस्थान की करें तो यहाँ आज से पन्द्रह बीस साल पहले विद्यालयों में कई देशभक्ति की कविताएं कोर्स का हिस्सा थीं जो राजस्थान के महान योद्धों के जीवन से छात्रों को परिचय कराती थी मगर पता नहीं इस वैचारिक बदलाव की अंधी ने क्या जादू सा कर दिया कि हमारे निति निर्धारकों को उन कविताओ को पढ़ना अच्छा नहीं लगा . कई साल पहले राजस्थान बोर्ड की कक्षा सात में राजस्थान के कवि कन्हेया लाल सेठिया जी की कविता हुआ करती थी 'पिथल और पाथल' जिसे उन्होंने महाराणा प्रताप के संघर्ष के दिनों को कवि की विचारों में पिरो कर पेश किया था जिसे बाद में महज इस आधार पर हटा दिया गया कि यह इतिहास के विरुद्ध है हालांकि आज भी वह कविता जनजन की कंठाहार है मगर ये भी सत्य है कि अज ये कविता किताबों से लगाकर ई ज्ञान का खजाना कहे जाने वाले इंटरनेट पर भी ये कविता मुझे तो नहीं मिली है. पता नहीं इसका इतना बड़ा अनादर क्यों हो गया?
कक्षा पांच की किताब में पन्नाधाय का एक पाठ हुआ करता था मगर अब वह भी पता नहीं कहा गायब है? प्रायमरी कक्षाओं से महाराणा के पहरुए के नाम से गदुलिये लुहार का पाठ था शायद वह भी अभी नहीं होगा। कुछ समय पहले तक ग्यारहवीं कक्षा में महीयसी मीरां शीर्षक का खंड काव्य था मेरे से तीन साल छोटे भाई ने उस क्लास में आने पर बताया कि वह तो बदला गया है अब उसके स्थान पर यशोधरा पढाया जाता है, मेरी यशोधरा से कोई मतभेद नहीं है मगर इस राष्ट्रीयकरण की दौड़ में हम अपने बच्चों को महाराणा प्रताप,चेटक, चित्तोड़गढ़, मीरां ,पन्नाधाय, हल्दीघाटी से लगाकर दीवेर से दूर करते जा रहे है .................... ।
सौजन्य से :- स्केम चौबीसइनहिन्दी
बढेगा राजस्थानी का श्री भण्डार
महाराणा प्रताप को लेकर जिन लोगों ने भी जो कुछ लिखा है वह उनके जीवन को प्रस्तुत करने के लिए सक्षम है उनके बरे मैं ज्यादा कभी जानने की इच्छा ही नहीं हुयी मगर कोई है जो हमेशा मेरे लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है मेरी जिज्ञासा सबसे ज्यादा किसी शख्स के प्रति है वह है राजस्थानी भाषा के जाने-माने कवि कन्हेयालाल सेठिया. मैंने राजस्थानी को भाषा इसलिए कहा है की देश के क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़े राज्य मैं बोली जाने वाली बोली है.
जो कई सालों से जब हिन्दी का विकास नहीं हुआ था उससे पहले से ही आम लोगों के द्वारा प्रयोग की जाती रही थी स्वतंन्त्रता संग्राम में भी ये नहीं कहा जा सकता है कि राजस्थान के विभिन्न पत्रों से लेखन के माध्यम के द्वारा हुए प्रयास हुए वे हिन्दी में थे वे भी इसी भाषा में थे उसके पहले राजामहाराजाओं ने इस साहित्य को काफी समृद्ध किया है जाने-अनजाने में ही सही अपने बखान के लिए ही उन्होंने जैसे चारणों और भाटों से लेखन करवाया
और इससे इस भाषा का आदर समृद्ध होता गया.
इस श्री भंडार का किस्सा वैसा ही थे जैसा सरस्वती के धन का होता है कहते है
सरस्वती के धन कि है बड़ी अपरं बात,
ज्यों खर्चे त्यों बढे ज्यों बचने घटी जाय.
राजस्थानी को समृद्ध करने में कई कवियों का बड़ा योगदान रहा. उनका लेखन स्वतंत्रता के बाद भी जारी रखा और जो आज भी जारी है.
पिछले दिनों राजस्थान में राजस्थानी को राज्य भाषा का दर्जा देने की मांग जोरों पर थी राजनीती इसी पर फोकस हो गई, हर पार्टी इसका फायदा लेने को आतुर थी और इसके चलते पता नहीं क्या-क्या होने लगा.
भाजपा के जसवंत सिंह ने कर्नल जेम्स टाड के इतिहास को नकारते हुए नया इतिहास लिखने की घोषणा की थीं. इसी तरह से राजस्थानी के कुछ कवियों ने भी राजस्थानी की मान्यता के लिए अपना अभियान आरंभ किया था मगर उनके इस अभियान से क्या हासिल हुआ किसी को मालूम नहीं है इसके विपक्ष वालों का तर्क है कि जब तक राजस्थानी का मानकीकरण नहीं होता इसे राज्य भाषा का दर्जा कैसे दिया जा सकता है?कुछ दिनों पहले की बात थी जब राजस्थान में इस बात को लेकर ही विवाद हो गया कि किसी अंग्ला विद्धवान ने किसी कवि को कुछ कह ही दिया था कि हो गई तूं-तूं मैं-मैं जो शायद किसी मतलब कि नहीं थी. मगर कभी किसी ने हमारी उस धरोहर की चिंता नहीं की जो बरसों से कूड़े के साथ फैक दी गई है अगर हम नए शीरे से इतिहास लिखते है तो किसके दम पर लिखेंगे उसी के दम पर जिसे हम ठुकरा चुके है
एक उदाहरण है कविवर कन्हेया लाल जी सेठिया की 'पिथल और पाथल' जिसे कभी हमारे कोर्स से हटा दिया गया था और धीरे धीरे पुस्तकालयों ने भी रद्दी में फैक दिया
ऐसा नहीं है कि कोई उसको चाहने वाला नहीं है आज भी उसके कद्रदानों की कोई कमी नहीं है मगर कोई ये बताये तो सही की यह मिले कहाँ से? आज निसंदेह नेट बहुत बड़ा माध्यम है ज्ञान के संचरण का मगर यहाँ भी इसका कंगाल ही है आशा है ये कमी कोई शीघ्र पूरी कर देगा. कोई भी चीज एकदम नहीं बदल जाती है बदलने में वक्त लगता है हो सकता है कि रही राजस्थानी भी आने वाले समय में न रहे मगर फ़िर भी इससे कई गुना आशा इस बात कि है कि राजस्थानी के साथ साथ उनसभी कवियों और लेखकों पर भी काम होगा और हमारे इतिहास के साथ हम अपने महापुरुषों को भी पुनः मूल रूप में पेश करने में सफल होंगे।
सौजन्य से :- स्केम चौबीसइनहिन्दी
Friday, June 6, 2008
माही एहडा पूत जण जेह्डा.........................
महाराणा प्रताप एक ऐसा नाम जिसके स्मरण मात्र से ही सारे दर्द दूर हो जाते है,मन तेज़ से तरोताजा हो जाता है, और उत्साह चरम पर पहुँच जाता है। कभी कभार हमारे युवा ये उत्साह रचनात्मकता की बजाय तोड़फोड़ में ज्यादा लगाते है।बस एक जरूरत है महाराणा प्रताप को पुनः समझने की और उसे अपने जीवन में उतरने की क्योंकि उन्होंने अपनी शान मैं कभी बादशाह अकबर की तरह अकबर नामा नहीं लिखवाया था और नहीं अपने पीछे अपने त्याग को याद रखवाने के लिए कोई ताज जैसा स्मारक बनवाया था।उन्होंने जीवन भर जंगलों की ख़ाक छानी फ़िर भी दिल्ली की गुलामी स्वीकार नहीं की ये आसन काम नहीं था मगर उन्होंने इस नामुमकिन को मुमकिन बनाया और दूसरो को आत्मसम्मान के लिए जीने की प्रेरणा दी। वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी।
हिंदुआ सूरज कहे जाने वाले महाराणा प्रताप ने अकबर के खिलाफ हथियार उठाये थे इसका ये मतलब कतई नहीं है की वे हिंसा को श्रेष्ट मानते थे। वे तो बस अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए अपने विरासत में मिली परम्परा को निभा रहे थे।उनके जीवन का हर पल हमारे लिए आदर्श हैं मगर सोचना ये हमको है कि क्या हम अपने जीवन में राणा प्रताप की तरह जीते है अपने दायित्वों को उतनी ही गंभीरता से निभाते है?शायद इसका जवाब नहीं ही होगा।तो बस दोस्तों आज ये प्राण हो ही जाए की कम से कम एक कोशिश तो की जा सकती हैमहाराणा प्रताप की बताई राह पर कदम रखने की कोशिश करने की ....................... ।आशा है कुछ भगत सिंह जैसे लोग के पद चिह्न जरूर दिखेंगे, जो मृत्यु की साधना में कहते थे -इतिहास में महाराणा प्रताप ने मरने की साधना की थी एक तरफ़ थी दिल्ली के महा प्रतापी सम्राट अकबर की महाशक्ति जिसके साथ वे भी थे जिनको होना चाहिए था और वे भी थे जिनको नहीं होना चाहिए था बुद्धि कहती थी टक्कर असंभव है, गणित कहता था विजय असंभव है समज्दर कहते थे रुक जाओ, रिश्तेदार कहते थे झुक जाओ राणा प्रताप न बुद्धि को ग़लत मानते थे और न ही गणित के विरिधि थे, न समझदारों का प्रतिकार करते थे और न ही रिश्तेदारों को इनकार पर वे कहते थे - " जब तक मनुष्य की तरह सम्मान के साथ जीना असंभव हो,तब मनुष्य की तरह सम्मान से मर तो सकते है। बिना कहे शायद उनके मन में था कि मनुष्य की तरह से मरकर हम आने वाली पीढियों के लिए जीवन द्वार खुला छोडें, कुत्तों की तरह पूंछ हिलाकर जीते हुए बंद न कर जाएं।
-युग पुरूष भगत सिंह
सौजन्य:- हिन्दी स्केम
जय जय धरती धोरां री............जय राणा प्रताप
इस नवाबों के शहर भोपाल से ही मेरा उस वीर भूमि को प्रणाम!
ये मेरा सौभाग्य है कि मेरा जन्म महाराणा प्रताप के जन्म स्थान कुम्भलगढ़ से महज साठ किलोमीटर पर है। जहाँ महाराणा प्रताप का राज्यरोहन हुआ था वह गोगुन्दा वह स्थान है जहाँ के कुछ इलाकों में मुझे एक एनजीओ के साथ काम करने का मौका मिला है। महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह की पहली राजधानी चित्तौड़गढ़ मेरे भोपाल आने के दौरान मिडवे की तरह पड़ता है और जिस शहर को अपनी पहली राजधानी को छोड़ने के बाद में महाराणा उदयसिंह ने बसाया था उसी उदयपुर शहर की गोद में मुझे अपने कोलेज के पांच साल गुजरने का मौका मिला।
जहाँ प्रताप ने हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर की मानसिंह के नेतृत्व में आयीं सेना से युद्ध लड़ा था उस तीर्थ भूमीं के दर्शन का सौभाग्य मुझे अठारह बीस साल की उम्र में मिला, जब में एक स्कूल ट्यूर में घूमने गया था।
वहीं महाराणा प्रताप के जीवन से विजय अभियान के लिए जाने जाने वाले दिवेर नामक स्थान पर मुझे ग्रेज्युएसन के आखिरी वर्ष में जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
अब एक इच्छा ये है कि प्रताप के आखिरी दिनों की शरणस्थली चावंड देखने को जन चाहता हूँ उम्मीद है कि ये ख्वयिस जल्द ही पुरी होगी। तब शायद में उनको करीब से देख सकूँगा और उस जमीं को प्रणाम कर सकूं।
तब महाराणा प्रताप के त्याग को जान सकूँगा।
Monday, June 2, 2008
राजस्थान इज रीयली रायल
ग्लैमर, विवादों और रोमांच से भरपूर बालीवुड फिल्म की तरह सुपरहिट रहे इंडियन प्रीमियर लीग [आईपीएल] का पहला साल दिग्गजों की दुर्दशा और एक छिपे रुस्तमों की जीत के लिए याद रखा जाएगा। सबसे कम दामों पर खरीदी गई राजस्थान रॉयल्स की टीम को चैंपियन बनाने वाले फिरकी के जादूगर शेन वार्न का यह करिश्मा क्रिकेट के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
\द्भटूर्नामेंट में सर्वश्रेष्ठ कप्तान साबित हुए वार्न ने सिताराविहीन टीम को विजेता का दर्जा दिलाकर साबित कर दिया कि आस्ट्रेलियाई क्रिकेट को वह अभी बहुत कुछ दे सकते थे। उनकी इस जीत के साथ ही 44 दिन तक चले उस सोप ओपेरा का भी पटाक्षेप हो गया जिसने लोगों को सास बहू सीरियल भुला दिए थे। बागी इंडियन क्रिकेट लीग को जवाब देने के लिए शुरू की गई आईपीएल एक भी गेंद फेंके जाने से पहले ही हिट हो गई थी जब प्रायोजकों और टीवी चैनलों में दुनिया की इस सबसे महंगी घरेलू लीग में हिस्सेदारी को लेकर होड़ मच गई थी।
ललित मोदी की परिकल्पना आईपीएल का जादू धीरे-धीरे लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा। क्रिकेटप्रेमियों को शहरों के बीच मुकाबले का नया प्रयोग रास आया और यही वजह है कि भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े आइकन सचिन तेंदुलकर के आउट होने पर भी यहां तालियां बजी। विदेशी खिलाडि़यों और भारतीय क्रिकेट के नए चेहरों को नामचीन सितारों के साथ जोड़कर आठ टीमें बनाई गई थी। इनमें आस्ट्रेलिया के महान क्रिकेटर ज्यॉफ मार्श के बेटे शॉन मार्श सबसे सफल बल्लेबाज साबित हुए जिन्हें बेहद कम दामों पर खरीदा गया था। टूर्नामेंट में सर्वाधिक 616 रन बनाकर उन्होंने ओरेज कैप भी अपने नाम की। पाकिस्तान के सोहेल तनवीर ने ग्लैन मैक्ग्रा और मुरलीधरन जैसे दिग्गजों को पछाड़ते हुए 22 विकेट चटकाकर 'परपल कैप' अपने नाम की।
कोलकाता नाइटराइडर्स के मालिक शाहरुख खान और किंग्स इलेवन पंजाब की मालिक प्रीति जिंटा ने ग्लैमर जोड़ा और हर मैच में नजर आई। उनके अलावा दिल्ली डेयरडेविल्स ने अक्षय कुमार और मुंबई इंडियंस ने रितिक रोशन को ब्रांड दूत बनाया। राजस्थान रॉयल्स की खिताबी जीत में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले आस्ट्रेलिया के शेन वॉटसन 474 रन और 17 विकेट के दम पर मैन ऑफ द टूर्नामेंट रहे।
ऐसा नहीं है कि टूर्नामेंट में सब कुछ सकारात्मक ही रहा। मैदान के भीतर और बाहर कई तरह के विवादों ने भी सुर्खियां बटोरी। इनमें सबसे काला अध्याय रहा हरभजन सिंह और एस श्रीसंत का थप्पड़ विवाद। मुंबई इंडियंस के लिए खेलने वाले हरभजन ने मैच हारने के बाद किंग्स इलेवन पंजाब के श्रीसंत को चांटा रसीद कर दिया और तीन करोड़ का जुर्माना तथा पूरे टूर्नामेंट का प्रतिबंध झेलना पड़ा। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूर की लगातार हार के बाद मालिक विजय माल्या की अपनी ही टीम से ठन गई। माल्या ने टीम के सीईओ चारू शर्मा को हटाने के अलावा टीम चयन में मनमानी का आरोप लगाकर कप्तान राहुल द्रविड़ को भी लताड़ा। इसके बाद कोलकाता और किंग्स इलेवन के रिजर्व खिलाडि़यों के साथ खराब बर्ताव की खबरें भी आई।
किंग्स इलेवन ने प्रीति जिंटा के दोस्तों को ठहराने के लिए इन खिलाडि़यों को पांच सितारा होटल खाली करने को कहा। वहीं कोलकाता टीम ने ऐसे खिलाडि़यों को घर लौट जाने के निर्देश दे दिए जो कोच जॉन बुकानन की रणनीति का हिस्सा नहीं थे। चीयरलीडर्स को लेकर भी कम बवाल नहीं मचा। मुंबई और कोलकाता में सामाजिक संगठनों की भृकुटियां इन पर तनी और इन लड़कियों को शरीर ढांकने वाले कपड़े पहनने पड़े। इन सबके बीच खिलाड़ियों ने अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर क्रिकेटप्रेमियों का ध्यान खेल से भटकने नहीं दिया। 39 बरस के जयसूर्या ने 14 पारियों में 31 छक्के लगाकर साबित किया कि खेल के इस लघुतम संस्करण में भी उम्र कामयाबी के आड़े नहीं आती।
दूसरी ओर रिकार्ड कीमतों पर बिके भारतीय क्रिकेट के कुछ कद्दावर अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। मुंबई इंडियंस के कप्तान और आइकन खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर लगभग आधे मैचों में ग्रोइन की चोट के कारण बाहर रहे। मैदान पर लौटने के बाद भी वह कोई बड़ा कमाल नहीं कर पाए। सबसे महंगे छह करोड़ में बिके महेंद्र सिंह धोनी फ्लाप तो नहीं रहे पर वह करिश्मा नहीं कर सके जिसके लिए वह मशहूर हैं। युवराज सिंह फार्म में तो थे लेकिन बल्ले से वैसा आतिश नहीं उगल सके जिसकी बानगी ब्रेंडन मैक्कुलम ने टूर्नामेंट के पहले ही मैच में दी थी। राहुल द्रविड़ पर बेंगलूर की पूरी टीम की बल्लेबाजी की जिम्मेदारी थी और अपने सारे साथियों की नाकामी के बावजूद वह औसत सफलता हासिल करने में कामयाब रहे। कोलकाता के कप्तान और आइकन सौरव गांगुली ने बल्ले और गेंद दोनों से कमाल दिखाया लेकिन उनकी टीम को कुछ नजदीकी मुकाबले हारने का खामियाजा भुगतना पड़ा।
कुल मिलाकर आईपीएल क्रिकेटप्रेमियों के लिए 44 दिन का ऐसा मनोरंजन रहा जिसमें शाम होते ही सबके कदम घरों की ओर मुड़ जाते थे। लाखों करोड़ों नजरें टीवी सेट पर चिपक जाती थी और हर जगह बस क्रिकेट के ही चर्चे थे। ऐसी कामयाबी भारत में ना पहले कभी किसी टूर्नामेंट को मिली और ना ही बीसीसीआई का खजाना कभी इतना भरा होगा।
सौजन्य - जागरण याहू इंडिया
अब नोकिया ही कनेक्ट करे बैंसला को .....
जनसत्ता के सत्ताईस मई के अंक में पहले पेज पर फस्ट लीड लगी थी-
बातचीत शुरू करें या फौजी करवाई का सामना करें
इसका स्टैंड फर्स्ट है -
राजस्थान सरकार ने दी गुर्ज्जर आन्दोलनकारियों को सख्त चेतावनी ।
इस समाचार के साथ एक फोटो भी छपी थी जो कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुयी थी चार कालम कि इस फोटो का केप्सन लिखा गया था -भरतपुर जिले के करवाडी गाँव में गुर्ज्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के साथ धरना देने बैठे गुर्ज्जर सेना द्वारा संचार नेटवर्क जामकर देने से बेकार हुए मोबाइल फोन दिखाते हुए। मुझे यहाँ एक बात समझ में नही आई कि बैंसला गाँव में क्यो बैठे है, क्या सरकार उनको ढुंन्ढ नही सके इसी के लिए शायद वे गाँव में आ गए है ।
इस फोटो में कुल इक्कीस लोग दिख रहे है जिनमे से सात लोगों के पास मोबाइल है और उनके बीच बैंसला सीना ताने बैठे है। ऐसा तो हो ही नही सकता है कि बैंसला के पास मोबाइल नहीं रहा होगा।
समाचार में लिखा गया है कि सरकार के आधार पर बताया गया है कि रसद आपूर्ति बंद है मगर ये फोटो कुछ और ही बता रहा है बैंसला जी के दायें घुटने के पास बड़ा कार्टून खाने की सामग्री का रखा है तो दुसरे घुटने की तरफ़ छूता डब्बा है जो शायद बिसलरी का सा लगता है। महाशय स्वयं चटाई या दरी पर विराजमान है आख़िर धरना दे रहे है तो क्या नेता तो है, मगर उनके पास एक आम आदमी भी है जो मिटटी पर घास डाल कर बैठा है।
उन इक्कीस लोगों में से अधिकांस के पास नोकिया मोबाइल है तो फ़िर आरक्षण की क्या जरूरत है। वैसे ये नोकिया भी हमेशा कनेक्टिंग पीपुल का दावा करता रहता है हो बैंसला को और वसुंधरा को कन्नेक्ट क्यो नही कर पा रहा है ताकि आम आदमियों का फायदा हो सके ।
पता नहीं ये आरक्षण माँगा जा रहा है या तमाशा किया जा रहा है सरकार जनता या फ़िर आम आदमी के साथ जो चाहे गुज्जर समुदाय का हो या मीणा या फ़िर किसी अन्य जाति समुदाय का ।
Sunday, June 1, 2008
कभी दूसरो को फोड़ते, कभी ख़ुद 'फूट' में पड़ जाते गुर्ज्जर
Wednesday, May 21, 2008
थाने कसिक लगी धरती धोरा री ?
Thursday, May 15, 2008
ये खून तोह धुल जाएगा मगर ..............................
जयपुर में हुए ब्लास्ट पर आज यहाँ के सारे अखबारों ने फोल्लो स्तोरिस दी है ।
दैनिक जागरण के भोपाल संस्करण ने आज अपने यहाँ के महानगर पेज का फ्रंट पांच कालम को दिया है हेडिंग है सुराग मिले दहशत पर पगर
इंदौर मैं बत्तीस , जयपुर मैं बारह संदिग्द्घ गिरफ्तार कर्फ्यू ।
भोपाल से ही नवभारत अपनी पांच कलम की स्टोरी मैं लिखता है इंडियन मुजाहिदों ने ली जिम्मेदारी टी वी चेइनालों को ईमेल से भेजी थी धमाके से पहले की तसवीरें वीडियो साथ ही इसने भी इंदौर में धरे गए बत्तीस लोगों का जिक्र किया ।
दी पायोनीर लिखता है एंग्री जयपुर कोपेस विथ पेन साथ ही फ्रंट पेज की एक अन्य स्टोरी मैं लिखा ग्रिएफ़ ओवेरपोवेरस पिंक सिटी ।
इसी प्रकार भोपाल से हाल ही शुरू नवदुनिया का फर्स्ट लीड हेडिंग था पड़ोसी देश की सजीश का संकेत साथ ही इंडियन मुजाहिदीन ने ली जिम्मेदारी को बयां किया साथ ही इन्होने मद्य प्रदेश के सी एम शिवराज सिंह चौहान की एम पी कोका की मंजूरी पर लिखा है एम पी कोका को मंजूरी दे ।
भोपाल के राज एक्सप्रेस साथ ही इस पत्र ने लिखा है और धमाकों की धमकी साथ ही पर लिखा है एमपी में तलाशी सतर्कता और अमेरिका ने बढाया हाथ को प्राथमिकता दी है । राज ने अपने सम्पादकीय में लिखा बंद करो ये रस्मी अदायगी हेडिंग से सवाल किया है क्यो भारत अब तक अफजल गुरु को फंसी नही दे सका है ?
हिंदू ने वसुन्धरा राजे के हॉस्पिटल डोरे का फोटो लगाया है हेडिंग है जायसवाल पड़ोसी देश पर आरोप लगाया । टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने हुजी को प्रमुख सस्पेक्ट माना है जनसत्ता ने घटना को तीन कालम में समेट दिया है । लिखा है जयपुर धमाकों के सिलसिले में आधा दर्जन संदिग्ध हिरासत मैं एक का स्क्रेच जारी ।
वहीं भोपाल के अपने प्रधान संस्करण में दैनिक भास्कर लिखता है दर्द जीतने में जुटा जयपुर साथ ही सभी बड़ी घटनाओ को स्थान दिया है धमाकों में हुजी के हाथ की आशंका सेना की तैनाती , गिरफ्तारी पन्द्रह इलाकों में कर्फ्यू बंगलादेश पर सुई सब लिखा है । साथ भास्कर ने सम्पादकीय में तलास्श्ने होंगे दहशत के सूत्र पर लिखा है ।
इन सब के बाद भी नव दुनिया ने जो फोटो लगाया है वो नया संदेश देने वाला है जिसमे दिखाया गया है की दमकल कर्मी फव्वारा चला रहा है,कैप्शन है खून तौ धुल जाएगा पर जख्म
Wednesday, May 14, 2008
जयपुर हादसे पर अखबारों ने लिखा
जयपुर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों ने इस शांत शहर को दहला कर रख दिया।इस घटना को सभी अखबारो ने अपने अपने तरीके से पेश किया है पेश है एक रिपोर्ट । मंगलवार शाम को हुए इन धमाकों से जुड़ी ख़बरें हिंदी और अंग्रेज़ी के लगभग सभी अख़बारों में छाई हुई रही ।
भोपाल के अखबार की सुखियाँ
नव भारत ने फर्स्ट लीड लगाई ग्यारह मिनिट आठ धमाके ,पिचहत्तर मरे इस समाचार के बावजूद भी एक तिहाई पहला पेज विज्ञापन है ।
वही पिछले कुछ दिनों से नए कलेवर के साथ आया नवदुनिया लिखता है धमाकों से दहला जयपुर कुल आधे पेज का कवरेज़ दिया गया है कहा है खून से लाल हुयी गुलाबी नगरी ।
द पयोनीर ने लिखा पिंक सिटी लाल हुयी साथ मरे इसी प्रकार इंग्लिश का एच टी लिखता है टेरर स्ट्रिक्स पिंक सिटी साथ ही उन भयानक बीस मिनिट का ब्योरा पेश किया है ।
भोपाल का एक अन्य हिन्दी प्रमुख समाचार पत्र राज एक्सप्रेस ने लिखा अमंगल गुलाबी शहर पर आतंकी कहर , हुजी और लश्कर पर नजर साथ ही ये भी लिखा है आठ धमाके सौ मरे । दैनिक भास्कर ने अपने कार्पोरेट सिटी के एडिशन का पुरा फ्रंट पेज जयपुर के हमले को समर्पित किया पेज दो पर भोपाल मे भोपाल का हाय अलर्ट के अलावा एक और पेज पन्द्रह पुरा जयपुर को केंद्रित किया वहा बताया गुलाबी नगर में धमाकों का कहर कम्पलीट कवरेज में भरपूर फोटो और ग्राफिक्स का प्रयोग किया है।
दैनिक हिंदुस्तान लिखता है कि पंद्रह मिनट के भीतर एक के बाद एक आठ बम धमाकों में लगभग 75 लोग मारे गए हैं जबकि 150 से अधिक घायल हुए हैं।इसी ख़बर के साथ अख़बार ने सुर्खी लगाई है - निशाने पर हैं परमाणु और तेल ठिकाने भी। इसमें कहा गया है कि 'आतंकवादी' संगठनों की ओर से परमाणु केंद्रों, तेल शोधक संयंत्रों, रक्षा प्रतिष्ठानों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, बांधों, आईटी केंद्रों के अलावा टाटा और रिलायंस जैसे प्रतिष्ठित निजी औद्योगिक संस्थानों को निशाना बनाने की ख़ुफ़िया सूचना है। इसके मद्देनज़र सोमवार को फौरी बैठक बुलाकर इनकी सुरक्षा को पुख़्ता किए जाने पर विचार किया गया ।
नवभारत टाइम्स की सुर्खी है - धमाकों से पिंक सिटी हुआ लाल। अख़बार लिखता है कि आंतकवादियों ने जयपुर को निशाना बनाकर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मैप पर इसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश की है, जिस तरह मंदिर को निशाना बनाया गया, उसके पीछे माहौल बिगाड़ने की साजिश नज़र आती है ।
दैनिक जागरण का बैनर हेडलाइन है - गुलाबी नगरी खून से लाल, 70 मरे। अख़बार लिखता है कि धमाकों में लश्कर का हाथ होने की संभावना है।
टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक है- एंड नाऊ, इट्स जयपुर. अख़बार ने मृतकों की संख्या 80 बताई है. इस रिपोर्ट में धमाकों की तुलना मालेगाँव में हुए विस्फोटों से की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह मालेगाँव में साइकल पर रखे बमों में धमाके किए गए, उसी तरह जयपुर में भी अधिकांश धमाके साइकल बम के ज़रिए किए गए.
Monday, May 12, 2008
‘जोधाणो नित रौ भलो’
मैं थार मरुस्थल का स्वर्णिम द्वार विश्व विख्यात जोधपुर हूं। राजनीति की सीमित शब्दावली में मारवाड़ की राजधानी किंतु मेरी सौम्य भाषा, आत्मीय आचरण, शालीन परिधान, गरिष्ठ व्यंजन, शास्त्रीय एवं लोक ललित कलाओं के सम्मोहन से राजस्थान की सभी पूर्व रियासतों के लोग देश विदेश में मारवाड़ी कहलाते हैं।
मैं राजस्थान की संस्कृति का मानक (स्टैंडर्ड) स्वरूप हूं। जोधपुर का नाम लेते ही विश्व के मानस पटल पर भव्य एवं दिव्य संस्कृति की छवि चित्रांकित हो जाती है। उन्नत उत्तुंग मेहरानगढ़ दुर्ग, आंगन में केसरिया बालम पधारो म्हारे देस की स्वर लहरियां।
साढ़े पांच सौ वर्ष पूर्व प्राचीन राजधानी मंडोर को विजित करने की घोर संघर्ष मय प्रक्रिया में राव जोधाजी ने एक जाटनी की कुटिया में थाली के बीच खीच खाने में हाथ जल जाने तथा जाटनी के उपदेश से वर्तमान पचेटिया पहाड़ी पर दुर्ग बनाया गया। (जोधपुर बसाया)
तभी से मैंने अनेक उत्थान पतन के दृश्य देखे हैं। चाहे राजाराम मेघवाल की बलि हो या चिड़ियानाथजी का अभिशाप। दिल्ली के हुमायूं मेरी सीमा से पलायन कर गए। शेरशाह सूरी तो ‘मुट्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली की सल्तनत खोने’ के भय से मेरी सरहद से लौट गए।
महाराजा जसवंतसिंह की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब ने मुझ पर कब्जा किया मगर वीर दुर्गादास राठौड़ ने विलक्षण शौर्य से मुझे उन्मुक्त कराया। राजा मानसिंह के समय मैंने फिर पराजय देखी मगर प्रखर शौर्य, अनन्य राष्ट्र भक्ति, मरुभूमि से जन्मी शाश्वत मौलिक संस्कृति के कारण मेरा सतत विकास होता रहा। पर्वत श्रंखलाओं की घाटियों को चीर कर पूरा शहर बसाया गया। दुर्भिक्षों की श्रंखला से बचने दो सौ से अधिक जल स्रोतों का निर्माण किया गया।
सुरक्षित एवं शांतिप्रिय वातावरण वास्तुकला, चित्रकला के साथ विभिन्न लोक एवं कुटीर कलाएं पनपती रहीं। मेरी भाषा मंगलमय हो गई। नये-नये व्यंजनों का आविष्कार हुआ। भक्ति रस की धाराएं उमड़ने लगीं। हथाइयां जमने लगीं। शिक्षा का तीव्र गति से विस्तार हुआ और स्वतंत्रता के लिए व्यापक सत्याग्रह शुरू हुआ।
विश्व के सभी क्षेत्रों में मेरे जोधपुरी मिलेंगे जो आज भी मौलिक संस्कृति से जुड़े हैं। जोधपुर का सामान्य नागरिक भी सिर्फ सामाजिक प्राणी नहीं है। संस्कृति का साधक है। सांप्रदायिक सामंजस्य भाईचारा से आगे रक्त संबंधों जैसा है। पाकिस्तान बना तो सर्वाधिक शांति जोधपुर में रही।
जब 1965 में पाकिस्तान ने दो सौ बम गिराए, 1971 में भी हवाई हमले हुए मगर मैं वीरान नहीं हुआ, अब तो पच्चीस गुणा अधिक बस गया हूं। मेरी चारदीवारी से बाहर दस-दस किलोमीटर तक मकान बनाने की जमीन नहीं रही। मेरे आंगन की सभी जातियां संपन्न और प्रबुद्ध हैं।
मेरी कुछ अपेक्षाएं हैं। यहां तेल शोधक संयंत्र, गैस आधारित विशाल विद्युत उत्पादन केंद्र, केंद्रीय विश्वविद्यालय, मरुस्थल को रोकेने के लिए राष्ट्रीय मरु विकास प्राधिकरण, अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा बने। कभी राणीसर पदमसर ओवर फ्लो होते तो लोग सरिता से जल प्रवाह की पूजा करते। अब सीवरेज लाइन से दलदल उफनता है। नई गटर लाइनें बननी तथा पेयजल के विशाल फिल्टर हाउस बनाने अनिवार्य।
मुझे चारदीवारी के भीतर ‘हेरिटेज सिटी’ घोषित किया जाए, वहां नवनिर्माण न हो, शहर के बाहर बिना भूतल पार्किग के बहुमंजिली इमारतें न बनें। मैं हथाइयों, धींगा गवर व गणगौर मेले का सौम्य उत्सवप्रिय नगर हूं। मुझे भीड़तंत्र में न कुचला जाए। आज भी विदेशी मेरे परिवेश को देख कर चमत्कृत होते हैं। मेरा पर्यावरण न बदला जाए ताकि मैं शताब्दियों तक संस्कृति का तीर्थ रहूं। लोग कहते रहें ‘जोधाणो नित रो भलो।’
-लक्ष्मीकांत जोशी सोजन्य डीबी
Sunday, May 4, 2008
मनोज गुरु भी लिखने लगे ब्लाग
कल की बात है ,
मैं कम्प्यूटर पर उदयपुर के ब्लॉग सर्च करने में लगा था तभी मन में एक खुराफात आई तो मैंने सर्च टोपिक विंडो में मनोज लोढा लिख दिया। जनाब होना क्या था कम्प्यूटर कभी झूठ नहीं बोलता है बहती उसने बिना किसी देर के चार पांच लिंक बता दिए ।
अब बताने वाली बात ये है की मनोज सर ने भी अपना ब्लॉग बनाया था इस ब्लॉग पर हालांकि एक ही पोस्ट्स था मगर बनाया तो था उम्मीद है की ये आगे जारी रहेगा
सुरजपोल नाम का ये ब्लॉग एक दिसम्बर दो हजार सात को बनाया गया ।
Monday, April 28, 2008
महाराणा प्रताप अकबर की अधीनता पर
एक लोककथा के मुताबिक प्रसिद्धि है कि जब बीकानेर के राजारायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज को पता चला कि महाराणा प्रताप अकबर की अधीनता स्वीकार कर रहे है। तो उनसे रहा नही गया और उन्होंने राणा प्रताप को लिखा -
पाताल जो पातशाहबोले मुख हुन्तान बयन
मिहर पछम दिस मांह , उगे कासप राव उत । ।
पतकुं मुन्छां पाण , कै पतकुं निज तन करद
दीजे लिख दीवान , इस दो महली बात इक । ।
स्वतंत्रता का अधिकारी
रोम रोम से निकल रही थी चमक चमक चिंगारी ।
अपना सब कुछ लोटा दिया जननी पद नेह लगाकर
कलित कीर्ति फैला दी है निद्रित मेवाड़ जगाकर ।
महाराणा प्रताप के बारे में
श्याम नारायण पाण्डेय
Wednesday, April 23, 2008
महारण प्रताप री मृत्यु पर अकबर बादशाह री भावना उन्नीस जनवरी पन्द्रह सौ सतानवे मे जब राणा प्रताप रो स्वर्गवास होयो तो इन मौका पे दुरसा चारण महाराणा प्रताप पे एक कविता बांच टू सब दरबारी यो ही समज्याँ के अबे दुर्सा की मौत है पण अकबर उंने पाछो बंच्वा रा वास्ते कह्यो वीं इन मारवाडी छप्पन ने पाछो बाँच्यो
- अस लेगा अन दाग , पाग लेगो अन नामीगो
आड़ा गव्डाय जिकों बेह्तो धुर बामी
नवरोजे नह गयो नगो आतशा नवली
न गो झरोखा हेठ जेठ दुनिया दह्ल्ली
गहलोत राणा जीत गयो , दशन मूंद रसना डसी
iishaas
iishaas मूक भरिया नयन तो मृत शाह प्रताप सी ।
महाराणा प्रताप पे किताबा री बात
जद आमेर रा राजकुंवर राणा प्रताप रा वास्ते बादशाह अकबर रो संदेशो लाया
तो उन रो भी उदेपुर मे सत्कार होयो पण जब राणा झील री पाल पे उनकी बात नि मान्या
तो विं ताव मे आय अर कह्यो
राणा सों भोजन समय , गही मान यह बान । हम क्यों जैंवे आपहू , जेवंत हो किन आन । कुंवर आप आरो गीये , राणा भख्यो हेरि । मोहि गरानी कछु , अबे जेइहू फेरी ।
कही घरानी की कुंवर , भई गरानी जोही ।
अटक नही कर देउंगो , तरन चूरण तोही ।
दियो ठेलि कांसो कंवर , उठे सहित निज साथ ।
चुलू आन भरी हाँ कह्यो , पौंछ रुमालन हाथ ।
या बात महाराणा प्रताप पे डा भवान सिंह राणा की किताब री बात,
काले दूजी बात होएली ।
जे राणा प्रताप जे मेवाड़
Tuesday, April 22, 2008
Monday, April 21, 2008
यो महरी जनिती मायाड भाषा ने म्हारो प्रणाम है
आजम्हारी तुतलाती आवाज है पण ऊ ने मेरा राम राम है