जनसत्ता के सत्ताईस मई के अंक में पहले पेज पर फस्ट लीड लगी थी-
बातचीत शुरू करें या फौजी करवाई का सामना करें
इसका स्टैंड फर्स्ट है -
राजस्थान सरकार ने दी गुर्ज्जर आन्दोलनकारियों को सख्त चेतावनी ।
इस समाचार के साथ एक फोटो भी छपी थी जो कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुयी थी चार कालम कि इस फोटो का केप्सन लिखा गया था -भरतपुर जिले के करवाडी गाँव में गुर्ज्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के साथ धरना देने बैठे गुर्ज्जर सेना द्वारा संचार नेटवर्क जामकर देने से बेकार हुए मोबाइल फोन दिखाते हुए। मुझे यहाँ एक बात समझ में नही आई कि बैंसला गाँव में क्यो बैठे है, क्या सरकार उनको ढुंन्ढ नही सके इसी के लिए शायद वे गाँव में आ गए है ।
इस फोटो में कुल इक्कीस लोग दिख रहे है जिनमे से सात लोगों के पास मोबाइल है और उनके बीच बैंसला सीना ताने बैठे है। ऐसा तो हो ही नही सकता है कि बैंसला के पास मोबाइल नहीं रहा होगा।
समाचार में लिखा गया है कि सरकार के आधार पर बताया गया है कि रसद आपूर्ति बंद है मगर ये फोटो कुछ और ही बता रहा है बैंसला जी के दायें घुटने के पास बड़ा कार्टून खाने की सामग्री का रखा है तो दुसरे घुटने की तरफ़ छूता डब्बा है जो शायद बिसलरी का सा लगता है। महाशय स्वयं चटाई या दरी पर विराजमान है आख़िर धरना दे रहे है तो क्या नेता तो है, मगर उनके पास एक आम आदमी भी है जो मिटटी पर घास डाल कर बैठा है।
उन इक्कीस लोगों में से अधिकांस के पास नोकिया मोबाइल है तो फ़िर आरक्षण की क्या जरूरत है। वैसे ये नोकिया भी हमेशा कनेक्टिंग पीपुल का दावा करता रहता है हो बैंसला को और वसुंधरा को कन्नेक्ट क्यो नही कर पा रहा है ताकि आम आदमियों का फायदा हो सके ।
पता नहीं ये आरक्षण माँगा जा रहा है या तमाशा किया जा रहा है सरकार जनता या फ़िर आम आदमी के साथ जो चाहे गुज्जर समुदाय का हो या मीणा या फ़िर किसी अन्य जाति समुदाय का ।
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