Saturday, June 7, 2008

दोष नहीं बच्चों का, गलती बडों की है

परसों की बात है मेरी एक दोस्त राजस्थान पत्रिका के भोपाल संसकरण मैं काम करती है जिसका ऑफिस चेतक ब्रिज के पास है. उसके घर पर छोटे भाई ने पता पूछा तो उसने बताया कि चेतक ब्रिज तो उसके लिए ये मजाक का विषय बन गया इसका कारण उसके सुनने में हुयी त्रुटी रही हो या फ़िर हमारी इस बदली हुयी शिक्षा का नतीजा उसका जवाब था क्या आपका ऑफिस तो चेचक ब्रिज के पास है यानि आपके ऑफिस में चिकन पोक्स भी रहता है
उस बच्चे को शायद महाराणा प्रताप के बरे में पता होगा या नहीं मगर उसे ये बात तो पक्की है कि उसे चेतक के बरे में दयां नहीं था ये है ना हमारे लिए शर्म की बात यदि नहीं तो इससे बुरे और किस हालत की उम्मीद कर रहे है आप ।

वक्त के साथ सबकुछ बदल रहा है लोग बदले, सरकारें बदली,जनता की विचारधारा बदली और शायद इसी बदली विचारधारा का नतीजा है कि हमारे स्कूली बच्चों के कोर्स भी बदले जा रहे है।
मेरा अपनी दोस्त से पहला सवाल यहीं था कि क्या वह कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है तो उसका उत्तर सकारात्मक था आज दशा यह है कि हमारे बच्चे चिकन पोक्स में समझते है उर उन्हें महाराणा प्रताप के घोडे का नाम मालूम नहीं है या फ़िर उनके इन्ट्रेस्ट में शामिल नहीं है ।
हम तो सरकारी स्कूलों में पढे है जहाँ सर छिपाने के लिए छत नहीं होती थी मगर वहां से सर उठाने का सबक जर्रोर मिला था वहां खाने के लिए बड़ा पैकेट नहीं होता था मगर भरपेट संस्कार जरूर मिले थे ।
हाँ मैं ये स्वीकारता हूँ कि हमे पर्सनालिटी के जैसा कुछ बताया नहीं गया था फ़िर भी देशभक्ति की प्रेरणा उसी विद्या के मन्दिर में मिली है मगर आज क्या हो रहा है ..............
उससे आप भी वाकिफ है ?
आज किताबों में हेरी पोर्टर को महत्व दिया जाता है पंचतंत्र को नहीं, मिक्की माउस के बरे में बताया जाता है महाराणा प्रताप के बारे में नहीं, फ़िर कैसे पता चलेगा? सब दोष हमारा ही है हमने अपनी शिक्षा की गुणवत्ता के नाम पर ऐसी दुकाने खोल डाली है जहाँ न ही तो ज्ञान है और ना ही संस्कार और ना ही अपनी परम्परा कि कोई सार्थक शिक्षा।
इसके साथ अब एक और दुख वाली बात ये है कि हमारे सरकारी स्कूलों को भी अब भारतीय आदर्शों को पढ़ने में शर्म आने लगी है।
अगर बात राजस्थान की करें तो यहाँ आज से पन्द्रह बीस साल पहले विद्यालयों में कई देशभक्ति की कविताएं कोर्स का हिस्सा थीं जो राजस्थान के महान योद्धों के जीवन से छात्रों को परिचय कराती थी मगर पता नहीं इस वैचारिक बदलाव की अंधी ने क्या जादू सा कर दिया कि हमारे निति निर्धारकों को उन कविताओ को पढ़ना अच्छा नहीं लगा . कई साल पहले राजस्थान बोर्ड की कक्षा सात में राजस्थान के कवि कन्हेया लाल सेठिया जी की कविता हुआ करती थी 'पिथल और पाथल' जिसे उन्होंने महाराणा प्रताप के संघर्ष के दिनों को कवि की विचारों में पिरो कर पेश किया था जिसे बाद में महज इस आधार पर हटा दिया गया कि यह इतिहास के विरुद्ध है हालांकि आज भी वह कविता जनजन की कंठाहार है मगर ये भी सत्य है कि अज ये कविता किताबों से लगाकर ई ज्ञान का खजाना कहे जाने वाले इंटरनेट पर भी ये कविता मुझे तो नहीं मिली है. पता नहीं इसका इतना बड़ा अनादर क्यों हो गया?
कक्षा पांच की किताब में पन्नाधाय का एक पाठ हुआ करता था मगर अब वह भी पता नहीं कहा गायब है? प्रायमरी कक्षाओं से महाराणा के पहरुए के नाम से गदुलिये लुहार का पाठ था शायद वह भी अभी नहीं होगा। कुछ समय पहले तक ग्यारहवीं कक्षा में महीयसी मीरां शीर्षक का खंड काव्य था मेरे से तीन साल छोटे भाई ने उस क्लास में आने पर बताया कि वह तो बदला गया है अब उसके स्थान पर यशोधरा पढाया जाता है, मेरी यशोधरा से कोई मतभेद नहीं है मगर इस राष्ट्रीयकरण की दौड़ में हम अपने बच्चों को महाराणा प्रताप,चेटक, चित्तोड़गढ़, मीरां ,पन्नाधाय, हल्दीघाटी से लगाकर दीवेर से दूर करते जा रहे है .................... ।
सौजन्य से :- स्केम चौबीसइनहिन्दी

बढेगा राजस्थानी का श्री भण्डार


महाराणा प्रताप को लेकर जिन लोगों ने भी जो कुछ लिखा है वह उनके जीवन को प्रस्तुत करने के लिए सक्षम है उनके बरे मैं ज्यादा कभी जानने की इच्छा ही नहीं हुयी मगर कोई है जो हमेशा मेरे लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है मेरी जिज्ञासा सबसे ज्यादा किसी शख्स के प्रति है वह है राजस्थानी भाषा के जाने-माने कवि कन्हेयालाल सेठिया. मैंने राजस्थानी को भाषा इसलिए कहा है की देश के क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़े राज्य मैं बोली जाने वाली बोली है.
जो कई सालों से जब हिन्दी का विकास नहीं हुआ था उससे पहले से ही आम लोगों के द्वारा प्रयोग की जाती रही थी स्वतंन्त्रता संग्राम में भी ये नहीं कहा जा सकता है कि राजस्थान के विभिन्न पत्रों से लेखन के माध्यम के द्वारा हुए प्रयास हुए वे हिन्दी में थे वे भी इसी भाषा में थे उसके पहले राजामहाराजाओं ने इस साहित्य को काफी समृद्ध किया है जाने-अनजाने में ही सही अपने बखान के लिए ही उन्होंने जैसे चारणों और भाटों से लेखन करवाया
और इससे इस भाषा का आदर समृद्ध होता गया.
इस श्री भंडार का किस्सा वैसा ही थे जैसा सरस्वती के धन का होता है कहते है
सरस्वती के धन कि है बड़ी अपरं बात,

ज्यों खर्चे त्यों बढे ज्यों बचने घटी जाय.
राजस्थानी को समृद्ध करने में कई कवियों का बड़ा योगदान रहा. उनका लेखन स्वतंत्रता के बाद भी जारी रखा और जो आज भी जारी है.
पिछले दिनों राजस्थान में राजस्थानी को राज्य भाषा का दर्जा देने की मांग जोरों पर थी राजनीती इसी पर फोकस हो गई, हर पार्टी इसका फायदा लेने को आतुर थी और इसके चलते पता नहीं क्या-क्या होने लगा.
भाजपा के जसवंत सिंह ने कर्नल जेम्स टाड के इतिहास को नकारते हुए नया इतिहास लिखने की घोषणा की थीं. इसी तरह से राजस्थानी के कुछ कवियों ने भी राजस्थानी की मान्यता के लिए अपना अभियान आरंभ किया था मगर उनके इस अभियान से क्या हासिल हुआ किसी को मालूम नहीं है इसके विपक्ष वालों का तर्क है कि जब तक राजस्थानी का मानकीकरण नहीं होता इसे राज्य भाषा का दर्जा कैसे दिया जा सकता है?कुछ दिनों पहले की बात थी जब राजस्थान में इस बात को लेकर ही विवाद हो गया कि किसी अंग्ला विद्धवान ने किसी कवि को कुछ कह ही दिया था कि हो गई तूं-तूं मैं-मैं जो शायद किसी मतलब कि नहीं थी. मगर कभी किसी ने हमारी उस धरोहर की चिंता नहीं की जो बरसों से कूड़े के साथ फैक दी गई है अगर हम नए शीरे से इतिहास लिखते है तो किसके दम पर लिखेंगे उसी के दम पर जिसे हम ठुकरा चुके है
एक उदाहरण है कविवर कन्हेया लाल जी सेठिया की 'पिथल और पाथल' जिसे कभी हमारे कोर्स से हटा दिया गया था और धीरे धीरे पुस्तकालयों ने भी रद्दी में फैक दिया
ऐसा नहीं है कि कोई उसको चाहने वाला नहीं है आज भी उसके कद्रदानों की कोई कमी नहीं है मगर कोई ये बताये तो सही की यह मिले कहाँ से? आज निसंदेह नेट बहुत बड़ा माध्यम है ज्ञान के संचरण का मगर यहाँ भी इसका कंगाल ही है आशा है ये कमी कोई शीघ्र पूरी कर देगा. कोई भी चीज एकदम नहीं बदल जाती है बदलने में वक्त लगता है हो सकता है कि रही राजस्थानी भी आने वाले समय में न रहे मगर फ़िर भी इससे कई गुना आशा इस बात कि है कि राजस्थानी के साथ साथ उनसभी कवियों और लेखकों पर भी काम होगा और हमारे इतिहास के साथ हम अपने महापुरुषों को भी पुनः मूल रूप में पेश करने में सफल होंगे।

सौजन्य से :- स्केम चौबीसइनहिन्दी

Friday, June 6, 2008

माही एहडा पूत जण जेह्डा.........................

महाराणा प्रताप एक ऐसा नाम जिसके स्मरण मात्र से ही सारे दर्द दूर हो जाते है,मन तेज़ से तरोताजा हो जाता है, और उत्साह चरम पर पहुँच जाता है। कभी कभार हमारे युवा ये उत्साह रचनात्मकता की बजाय तोड़फोड़ में ज्यादा लगाते है।बस एक जरूरत है महाराणा प्रताप को पुनः समझने की और उसे अपने जीवन में उतरने की क्योंकि उन्होंने अपनी शान मैं कभी बादशाह अकबर की तरह अकबर नामा नहीं लिखवाया था और नहीं अपने पीछे अपने त्याग को याद रखवाने के लिए कोई ताज जैसा स्मारक बनवाया था।उन्होंने जीवन भर जंगलों की ख़ाक छानी फ़िर भी दिल्ली की गुलामी स्वीकार नहीं की ये आसन काम नहीं था मगर उन्होंने इस नामुमकिन को मुमकिन बनाया और दूसरो को आत्मसम्मान के लिए जीने की प्रेरणा दी। वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी।
हिंदुआ सूरज कहे जाने वाले महाराणा प्रताप ने अकबर के खिलाफ हथियार उठाये थे इसका ये मतलब कतई नहीं है की वे हिंसा को श्रेष्ट मानते थे। वे तो बस अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए अपने विरासत में मिली परम्परा को निभा रहे थे।उनके जीवन का हर पल हमारे लिए आदर्श हैं मगर सोचना ये हमको है कि क्या हम अपने जीवन में राणा प्रताप की तरह जीते है अपने दायित्वों को उतनी ही गंभीरता से निभाते है?शायद इसका जवाब नहीं ही होगा।तो बस दोस्तों आज ये प्राण हो ही जाए की कम से कम एक कोशिश तो की जा सकती हैमहाराणा प्रताप की बताई राह पर कदम रखने की कोशिश करने की ....................... ।आशा है कुछ भगत सिंह जैसे लोग के पद चिह्न जरूर दिखेंगे, जो मृत्यु की साधना में कहते थे -इतिहास में महाराणा प्रताप ने मरने की साधना की थी एक तरफ़ थी दिल्ली के महा प्रतापी सम्राट अकबर की महाशक्ति जिसके साथ वे भी थे जिनको होना चाहिए था और वे भी थे जिनको नहीं होना चाहिए था बुद्धि कहती थी टक्कर असंभव है, गणित कहता था विजय असंभव है समज्दर कहते थे रुक जाओ, रिश्तेदार कहते थे झुक जाओ राणा प्रताप न बुद्धि को ग़लत मानते थे और न ही गणित के विरिधि थे, न समझदारों का प्रतिकार करते थे और न ही रिश्तेदारों को इनकार पर वे कहते थे - " जब तक मनुष्य की तरह सम्मान के साथ जीना असंभव हो,तब मनुष्य की तरह सम्मान से मर तो सकते है। बिना कहे शायद उनके मन में था कि मनुष्य की तरह से मरकर हम आने वाली पीढियों के लिए जीवन द्वार खुला छोडें, कुत्तों की तरह पूंछ हिलाकर जीते हुए बंद न कर जाएं।

-युग पुरूष भगत सिंह

सौजन्य:- हिन्दी स्केम

जय जय धरती धोरां री............जय राणा प्रताप

महाराणा प्रताप की धरती मेवाड़ से कुछ दूर,
इस नवाबों के शहर भोपाल से ही मेरा उस वीर भूमि को प्रणाम!

ये मेरा सौभाग्य है कि मेरा जन्म महाराणा प्रताप के जन्म स्थान कुम्भलगढ़ से महज साठ किलोमीटर पर है। जहाँ महाराणा प्रताप का राज्यरोहन हुआ था वह गोगुन्दा वह स्थान है जहाँ के कुछ इलाकों में मुझे एक एनजीओ के साथ काम करने का मौका मिला है। महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह की पहली राजधानी चित्तौड़गढ़ मेरे भोपाल आने के दौरान मिडवे की तरह पड़ता है और जिस शहर को अपनी पहली राजधानी को छोड़ने के बाद में महाराणा उदयसिंह ने बसाया था उसी उदयपुर शहर की गोद में मुझे अपने कोलेज के पांच साल गुजरने का मौका मिला।
जहाँ प्रताप ने हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर की मानसिंह के नेतृत्व में आयीं सेना से युद्ध लड़ा था उस तीर्थ भूमीं के दर्शन का सौभाग्य मुझे अठारह बीस साल की उम्र में मिला, जब में एक स्कूल ट्यूर में घूमने गया था।
वहीं महाराणा प्रताप के जीवन से विजय अभियान के लिए जाने जाने वाले दिवेर नामक स्थान पर मुझे ग्रेज्युएसन के आखिरी वर्ष में जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
अब एक इच्छा ये है कि प्रताप के आखिरी दिनों की शरणस्थली चावंड देखने को जन चाहता हूँ उम्मीद है कि ये ख्वयिस जल्द ही पुरी होगी। तब शायद में उनको करीब से देख सकूँगा और उस जमीं को प्रणाम कर सकूं।
तब महाराणा प्रताप के त्याग को जान सकूँगा।

Monday, June 2, 2008

राजस्थान इज रीयली रायल





सुपरहिट रहा आईपीएल का पहला संस्करण
ग्लैमर, विवादों और रोमांच से भरपूर बालीवुड फिल्म की तरह सुपरहिट रहे इंडियन प्रीमियर लीग [आईपीएल] का पहला साल दिग्गजों की दुर्दशा और एक छिपे रुस्तमों की जीत के लिए याद रखा जाएगा। सबसे कम दामों पर खरीदी गई राजस्थान रॉयल्स की टीम को चैंपियन बनाने वाले फिरकी के जादूगर शेन वार्न का यह करिश्मा क्रिकेट के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
\द्भटूर्नामेंट में सर्वश्रेष्ठ कप्तान साबित हुए वार्न ने सिताराविहीन टीम को विजेता का दर्जा दिलाकर साबित कर दिया कि आस्ट्रेलियाई क्रिकेट को वह अभी बहुत कुछ दे सकते थे। उनकी इस जीत के साथ ही 44 दिन तक चले उस सोप ओपेरा का भी पटाक्षेप हो गया जिसने लोगों को सास बहू सीरियल भुला दिए थे। बागी इंडियन क्रिकेट लीग को जवाब देने के लिए शुरू की गई आईपीएल एक भी गेंद फेंके जाने से पहले ही हिट हो गई थी जब प्रायोजकों और टीवी चैनलों में दुनिया की इस सबसे महंगी घरेलू लीग में हिस्सेदारी को लेकर होड़ मच गई थी।
ललित मोदी की परिकल्पना आईपीएल का जादू धीरे-धीरे लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा। क्रिकेटप्रेमियों को शहरों के बीच मुकाबले का नया प्रयोग रास आया और यही वजह है कि भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े आइकन सचिन तेंदुलकर के आउट होने पर भी यहां तालियां बजी। विदेशी खिलाडि़यों और भारतीय क्रिकेट के नए चेहरों को नामचीन सितारों के साथ जोड़कर आठ टीमें बनाई गई थी। इनमें आस्ट्रेलिया के महान क्रिकेटर ज्यॉफ मार्श के बेटे शॉन मार्श सबसे सफल बल्लेबाज साबित हुए जिन्हें बेहद कम दामों पर खरीदा गया था। टूर्नामेंट में सर्वाधिक 616 रन बनाकर उन्होंने ओरेज कैप भी अपने नाम की। पाकिस्तान के सोहेल तनवीर ने ग्लैन मैक्ग्रा और मुरलीधरन जैसे दिग्गजों को पछाड़ते हुए 22 विकेट चटकाकर 'परपल कैप' अपने नाम की।
कोलकाता नाइटराइडर्स के मालिक शाहरुख खान और किंग्स इलेवन पंजाब की मालिक प्रीति जिंटा ने ग्लैमर जोड़ा और हर मैच में नजर आई। उनके अलावा दिल्ली डेयरडेविल्स ने अक्षय कुमार और मुंबई इंडियंस ने रितिक रोशन को ब्रांड दूत बनाया। राजस्थान रॉयल्स की खिताबी जीत में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले आस्ट्रेलिया के शेन वॉटसन 474 रन और 17 विकेट के दम पर मैन ऑफ द टूर्नामेंट रहे।
ऐसा नहीं है कि टूर्नामेंट में सब कुछ सकारात्मक ही रहा। मैदान के भीतर और बाहर कई तरह के विवादों ने भी सुर्खियां बटोरी। इनमें सबसे काला अध्याय रहा हरभजन सिंह और एस श्रीसंत का थप्पड़ विवाद। मुंबई इंडियंस के लिए खेलने वाले हरभजन ने मैच हारने के बाद किंग्स इलेवन पंजाब के श्रीसंत को चांटा रसीद कर दिया और तीन करोड़ का जुर्माना तथा पूरे टूर्नामेंट का प्रतिबंध झेलना पड़ा। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूर की लगातार हार के बाद मालिक विजय माल्या की अपनी ही टीम से ठन गई। माल्या ने टीम के सीईओ चारू शर्मा को हटाने के अलावा टीम चयन में मनमानी का आरोप लगाकर कप्तान राहुल द्रविड़ को भी लताड़ा। इसके बाद कोलकाता और किंग्स इलेवन के रिजर्व खिलाडि़यों के साथ खराब बर्ताव की खबरें भी आई।
किंग्स इलेवन ने प्रीति जिंटा के दोस्तों को ठहराने के लिए इन खिलाडि़यों को पांच सितारा होटल खाली करने को कहा। वहीं कोलकाता टीम ने ऐसे खिलाडि़यों को घर लौट जाने के निर्देश दे दिए जो कोच जॉन बुकानन की रणनीति का हिस्सा नहीं थे। चीयरलीडर्स को लेकर भी कम बवाल नहीं मचा। मुंबई और कोलकाता में सामाजिक संगठनों की भृकुटियां इन पर तनी और इन लड़कियों को शरीर ढांकने वाले कपड़े पहनने पड़े। इन सबके बीच खिलाड़ियों ने अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर क्रिकेटप्रेमियों का ध्यान खेल से भटकने नहीं दिया। 39 बरस के जयसूर्या ने 14 पारियों में 31 छक्के लगाकर साबित किया कि खेल के इस लघुतम संस्करण में भी उम्र कामयाबी के आड़े नहीं आती।
दूसरी ओर रिकार्ड कीमतों पर बिके भारतीय क्रिकेट के कुछ कद्दावर अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। मुंबई इंडियंस के कप्तान और आइकन खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर लगभग आधे मैचों में ग्रोइन की चोट के कारण बाहर रहे। मैदान पर लौटने के बाद भी वह कोई बड़ा कमाल नहीं कर पाए। सबसे महंगे छह करोड़ में बिके महेंद्र सिंह धोनी फ्लाप तो नहीं रहे पर वह करिश्मा नहीं कर सके जिसके लिए वह मशहूर हैं। युवराज सिंह फार्म में तो थे लेकिन बल्ले से वैसा आतिश नहीं उगल सके जिसकी बानगी ब्रेंडन मैक्कुलम ने टूर्नामेंट के पहले ही मैच में दी थी। राहुल द्रविड़ पर बेंगलूर की पूरी टीम की बल्लेबाजी की जिम्मेदारी थी और अपने सारे साथियों की नाकामी के बावजूद वह औसत सफलता हासिल करने में कामयाब रहे। कोलकाता के कप्तान और आइकन सौरव गांगुली ने बल्ले और गेंद दोनों से कमाल दिखाया लेकिन उनकी टीम को कुछ नजदीकी मुकाबले हारने का खामियाजा भुगतना पड़ा।
कुल मिलाकर आईपीएल क्रिकेटप्रेमियों के लिए 44 दिन का ऐसा मनोरंजन रहा जिसमें शाम होते ही सबके कदम घरों की ओर मुड़ जाते थे। लाखों करोड़ों नजरें टीवी सेट पर चिपक जाती थी और हर जगह बस क्रिकेट के ही चर्चे थे। ऐसी कामयाबी भारत में ना पहले कभी किसी टूर्नामेंट को मिली और ना ही बीसीसीआई का खजाना कभी इतना भरा होगा।


अधिक जानकारी के लिए राजस्थान रोयाल्स
सौजन्य - जागरण याहू इंडिया

अब नोकिया ही कनेक्ट करे बैंसला को .....

जनसत्ता के सत्ताईस मई के अंक में पहले पेज पर फस्ट लीड लगी थी-


बातचीत शुरू करें या फौजी करवाई का सामना करें


इसका स्टैंड फर्स्ट है -


राजस्थान सरकार ने दी गुर्ज्जर आन्दोलनकारियों को सख्त चेतावनी


इस समाचार के साथ एक फोटो भी छपी थी जो कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुयी थी चार कालम कि इस फोटो का केप्सन लिखा गया था -भरतपुर जिले के करवाडी गाँव में गुर्ज्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के साथ धरना देने बैठे गुर्ज्जर सेना द्वारा संचार नेटवर्क जामकर देने से बेकार हुए मोबाइल फोन दिखाते हुए। मुझे यहाँ एक बात समझ में नही आई कि बैंसला गाँव में क्यो बैठे है, क्या सरकार उनको ढुंन्ढ नही सके इसी के लिए शायद वे गाँव में आ गए है ।



इस फोटो में कुल इक्कीस लोग दिख रहे है जिनमे से सात लोगों के पास मोबाइल है और उनके बीच बैंसला सीना ताने बैठे है। ऐसा तो हो ही नही सकता है कि बैंसला के पास मोबाइल नहीं रहा होगा।


समाचार में लिखा गया है कि सरकार के आधार पर बताया गया है कि रसद आपूर्ति बंद है मगर ये फोटो कुछ और ही बता रहा है बैंसला जी के दायें घुटने के पास बड़ा कार्टून खाने की सामग्री का रखा है तो दुसरे घुटने की तरफ़ छूता डब्बा है जो शायद बिसलरी का सा लगता है। महाशय स्वयं चटाई या दरी पर विराजमान है आख़िर धरना दे रहे है तो क्या नेता तो है, मगर उनके पास एक आम आदमी भी है जो मिटटी पर घास डाल कर बैठा है।


उन इक्कीस लोगों में से अधिकांस के पास नोकिया मोबाइल है तो फ़िर आरक्षण की क्या जरूरत है। वैसे ये नोकिया भी हमेशा कनेक्टिंग पीपुल का दावा करता रहता है हो बैंसला को और वसुंधरा को कन्नेक्ट क्यो नही कर पा रहा है ताकि आम आदमियों का फायदा हो सके ।


पता नहीं ये आरक्षण माँगा जा रहा है या तमाशा किया जा रहा है सरकार जनता या फ़िर आम आदमी के साथ जो चाहे गुज्जर समुदाय का हो या मीणा या फ़िर किसी अन्य जाति समुदाय का ।

Sunday, June 1, 2008

कभी दूसरो को फोड़ते, कभी ख़ुद 'फूट' में पड़ जाते गुर्ज्जर

आरक्षण पर मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री के उस बयां के बाद जिसमे उन्होंने आरक्षण लेने वालों को शायद शर्म आने लगी है या फ़िर उनको लगता है की केन्द्र सरकार के सामने दौड़ कर चले गए और उन्होंने रातों रात आरक्षण दे दिया तो नवम्बर में होने वाले चुनावों में गुज्जर नेता किस नये विषय पर भाषण देंगे क्योंकि सब कुछ होने के बाद भी वसुंधरा सरकार की टांग खीचने के नया विषय ढूढ बड़ा कठिन कम् होगा और इस महत्वकांशी परियोजना को दो तीन महीनों में पुरा कर पाने वाला कोई और मास्टर माइंड दिखाई नही पड़ता है इन दिनों खबरें ये सुनने में आ रही है कि राजस्थान में गुर्जरों को आरक्षण दिए जाने की मांग के समर्थन में दिल्ली में चल रहे आंदोलन में फूट पड़ गई है। वरिष्ठ गुर्जर नेता आंदोलन तो चला रहे हैं, मगर एक मंच पर आने को तैयार नहीं हैं। दूसरी तरफ़ अखिल भारतीय गुर्जर महासभा ने राजस्थान में आंदोलन के सिलसिले में महत्वपूर्ण फ़ैसला लेते हुए महासभा के प्रमुख महामंत्री के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा की है। उधर महासभा ने कोटला गांव के गुर्जर मुख्यालय में आयोजित पथिक सेना व समाज के अन्य संगठनों के सहयोग से आयोजित महापंचायत से अपने को अलग करते हुए कहा है कि महापंचायत से उनका कोई ताल्लुक नहीं है। दिल्ली में चलाए जा रहे गुर्जर आंदोलन कहे या हुडदंग में गुर्जर नेता बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।सवाल ये बना हुआ है कि इसका नेत्रत्व कौन करेगा बड़े कह रहे है कि नेतृत्व कि कोई बात नहीं है हम छोटे से छोटे बच्चे को अपना नेता मानेंगे जो हमारे हीत कि बात कर रहा है मगर युवा लोगो को तो डर है कि हम क्यो पीछे रहे . राजस्थान में एक कहावत है कि नाइयों कि बारात में सभी राजा वाली बात हो जाती है सभी दूसरो को उपदेश देते है और आदेश देते है मगर सुनने वाला भी अपने मन का मालिक कोई दूसरा आपकी बात क्यो सुने वह आपसे छोटा है कहा वह भी आपकी ही जाति है जो उसकी है दूसरी और इस महासभा ने उन संगठनों और नेताओ की उम्मीदों पर पानी फेर दिया जो गुज्जरों के बहाने वो भी राजस्थान कि राजनीती से मलाई चटाई के ख्वाब लेकर आए थे मगर कुछ को पुलिस ,कुछ को मीणा और कुछ को गुज्जर समुदाय के लोगों ने नो थैंक्स कह कर दरवाजे का रास्ता भी बता दिया उमा भारती ने आंदोलन के समर्थन में चंबल के पुल के पास धरना शुरू कर दिया है। शरद यादव, अजीत सिंह आंदोलन के समर्थन में आगे आ गए हैं। लालू प्रसाद यादव ने आंदोलन को जायज ठहराया है। एक बात तो तय है गुज्जर महासभा के नेतृत्व को मालूम है की ये जिस दूध को पिछले तीन सालों से मथ रहे है उसमे मलाई आ गई इसी लए तो छटने वाले दौड़ है फ़िर भी इनको मालूम है कि इस मंथन से घी आने में अभी समय बाकि है बस आप इंतजार करते रहिये ये दही ऐसे ही मंथर मंथर गति से नवम्बर तक मथा जाएगा और इसकी मलाई को घी मक्खन और घी समेत छाछ को तभी जम कर भोग लगाया जाएगा क्रिकेट कि भाषा में बोले तो अभी तो सेमी फायनल हुआ है फायनल नवम्बर में होगा फ़िर कौन सीरीज़ जीतता है देखने वाली बात होगी