Sunday, June 1, 2008

कभी दूसरो को फोड़ते, कभी ख़ुद 'फूट' में पड़ जाते गुर्ज्जर

आरक्षण पर मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री के उस बयां के बाद जिसमे उन्होंने आरक्षण लेने वालों को शायद शर्म आने लगी है या फ़िर उनको लगता है की केन्द्र सरकार के सामने दौड़ कर चले गए और उन्होंने रातों रात आरक्षण दे दिया तो नवम्बर में होने वाले चुनावों में गुज्जर नेता किस नये विषय पर भाषण देंगे क्योंकि सब कुछ होने के बाद भी वसुंधरा सरकार की टांग खीचने के नया विषय ढूढ बड़ा कठिन कम् होगा और इस महत्वकांशी परियोजना को दो तीन महीनों में पुरा कर पाने वाला कोई और मास्टर माइंड दिखाई नही पड़ता है इन दिनों खबरें ये सुनने में आ रही है कि राजस्थान में गुर्जरों को आरक्षण दिए जाने की मांग के समर्थन में दिल्ली में चल रहे आंदोलन में फूट पड़ गई है। वरिष्ठ गुर्जर नेता आंदोलन तो चला रहे हैं, मगर एक मंच पर आने को तैयार नहीं हैं। दूसरी तरफ़ अखिल भारतीय गुर्जर महासभा ने राजस्थान में आंदोलन के सिलसिले में महत्वपूर्ण फ़ैसला लेते हुए महासभा के प्रमुख महामंत्री के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा की है। उधर महासभा ने कोटला गांव के गुर्जर मुख्यालय में आयोजित पथिक सेना व समाज के अन्य संगठनों के सहयोग से आयोजित महापंचायत से अपने को अलग करते हुए कहा है कि महापंचायत से उनका कोई ताल्लुक नहीं है। दिल्ली में चलाए जा रहे गुर्जर आंदोलन कहे या हुडदंग में गुर्जर नेता बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।सवाल ये बना हुआ है कि इसका नेत्रत्व कौन करेगा बड़े कह रहे है कि नेतृत्व कि कोई बात नहीं है हम छोटे से छोटे बच्चे को अपना नेता मानेंगे जो हमारे हीत कि बात कर रहा है मगर युवा लोगो को तो डर है कि हम क्यो पीछे रहे . राजस्थान में एक कहावत है कि नाइयों कि बारात में सभी राजा वाली बात हो जाती है सभी दूसरो को उपदेश देते है और आदेश देते है मगर सुनने वाला भी अपने मन का मालिक कोई दूसरा आपकी बात क्यो सुने वह आपसे छोटा है कहा वह भी आपकी ही जाति है जो उसकी है दूसरी और इस महासभा ने उन संगठनों और नेताओ की उम्मीदों पर पानी फेर दिया जो गुज्जरों के बहाने वो भी राजस्थान कि राजनीती से मलाई चटाई के ख्वाब लेकर आए थे मगर कुछ को पुलिस ,कुछ को मीणा और कुछ को गुज्जर समुदाय के लोगों ने नो थैंक्स कह कर दरवाजे का रास्ता भी बता दिया उमा भारती ने आंदोलन के समर्थन में चंबल के पुल के पास धरना शुरू कर दिया है। शरद यादव, अजीत सिंह आंदोलन के समर्थन में आगे आ गए हैं। लालू प्रसाद यादव ने आंदोलन को जायज ठहराया है। एक बात तो तय है गुज्जर महासभा के नेतृत्व को मालूम है की ये जिस दूध को पिछले तीन सालों से मथ रहे है उसमे मलाई आ गई इसी लए तो छटने वाले दौड़ है फ़िर भी इनको मालूम है कि इस मंथन से घी आने में अभी समय बाकि है बस आप इंतजार करते रहिये ये दही ऐसे ही मंथर मंथर गति से नवम्बर तक मथा जाएगा और इसकी मलाई को घी मक्खन और घी समेत छाछ को तभी जम कर भोग लगाया जाएगा क्रिकेट कि भाषा में बोले तो अभी तो सेमी फायनल हुआ है फायनल नवम्बर में होगा फ़िर कौन सीरीज़ जीतता है देखने वाली बात होगी

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