यज्ञ अनल सा धधक रहा था वह स्वतंत्र अधिकारी
रोम रोम से निकल रही थी चमक चमक चिंगारी ।
अपना सब कुछ लोटा दिया जननी पद नेह लगाकर
कलित कीर्ति फैला दी है निद्रित मेवाड़ जगाकर ।
महाराणा प्रताप के बारे में
श्याम नारायण पाण्डेय
Monday, April 28, 2008
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2 comments:
यहां कविता की केवल चार लाइनें दी गयी हैं, पूरी कविता कहां और कैसे मिलेगी!!
धन्यवाद
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