महाराणा प्रताप की धरती मेवाड़ से कुछ दूर,
इस नवाबों के शहर भोपाल से ही मेरा उस वीर भूमि को प्रणाम!
ये मेरा सौभाग्य है कि मेरा जन्म महाराणा प्रताप के जन्म स्थान कुम्भलगढ़ से महज साठ किलोमीटर पर है।  जहाँ महाराणा प्रताप का राज्यरोहन हुआ था वह गोगुन्दा वह स्थान है जहाँ के कुछ इलाकों में मुझे एक एनजीओ के साथ काम करने का मौका मिला है।  महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह की पहली राजधानी चित्तौड़गढ़ मेरे भोपाल आने के दौरान मिडवे की तरह पड़ता है और जिस शहर को अपनी पहली राजधानी को छोड़ने के बाद में महाराणा उदयसिंह ने बसाया था उसी उदयपुर शहर की गोद में मुझे अपने कोलेज के पांच साल गुजरने का मौका मिला। 
जहाँ प्रताप ने हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर की मानसिंह के नेतृत्व में आयीं सेना से युद्ध लड़ा था उस तीर्थ भूमीं के दर्शन का सौभाग्य मुझे अठारह बीस साल की उम्र में मिला, जब में एक स्कूल ट्यूर में घूमने गया था। 
वहीं महाराणा प्रताप के जीवन से विजय अभियान के लिए जाने जाने वाले दिवेर नामक स्थान पर मुझे ग्रेज्युएसन के आखिरी वर्ष  में जाने का अवसर प्राप्त हुआ।
 अब एक इच्छा ये है कि प्रताप के आखिरी दिनों की शरणस्थली चावंड देखने को जन चाहता हूँ उम्मीद है कि ये ख्वयिस जल्द ही पुरी होगी।  तब शायद में उनको करीब से देख सकूँगा और उस जमीं को प्रणाम कर सकूं।
तब महाराणा प्रताप के त्याग को जान  सकूँगा।
Friday, June 6, 2008
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